प्रेम से जतलाओ हक़- -डा.(मानद)ममता बनर्जी "मंजर"

*प्रेम से जतलाओ हक़*


मिटे हजारों देश,आज तक इस धरती में।
मिले भग्न अवशेष,यथा भू की परती में।।
बनकर कई गुलाम,तजे निज संस्कृति प्यारी।
हुए कई बेनाम,संगिनी थी लाचारी।।


अपना देश महान,गुलामी का था मारा।
लेकिन सीना तान,वीर सम था हुंकारा।।
काँप गए ब्रिटिश,दबाए दुम थे भागे।
जगत झुकाया शीश,वीर भारत के आगे।।


किंतु हाय तकदीर ! हुआ खंडित शुचि भारत।
खींची गई लकीर,हुई जनता हत-आहत।।
फंडा तितर-बटेर,न समझे भारतवासी।
हुई एकता ढेर,चली जब चाल सियासी।।


गए वतन-ए-पाक,सहस्रों जन बन-ठन कर।
जमा लिए निज धाक,बंधु-भाई को तज कर।।
लेकिन भारतवर्ष,मनुजता घोर निभाई।
दिखा दिया सहर्ष,सभी को निज प्रभुताई।।


दिए सभी अधिकार,खुशी से भर कर झोली।
संग मनाए ईद,संग ही खेली होली।।
धन्य हमारा देश,नहीं इसके सम दूजा।
करो समापन क्लेश,करो रे इसकी पूजा।।


हम सब हैं नागरिक,हमें रहना भारत में।
सदा रहेंगे एक,देश की हर हालत में।।
अपना देश महान,नहीं कोई इसमें शक।
देकर के सम्मान,प्रेम से जतलाओ हक।।


*-डा.(मानद)ममता बनर्जी "मंजरी"*✍