अपना अवगुण जितना स्पष्ट दिखेगा उतना ही अवगुण के साथ संबंध- विच्छेद होगा

राम।।🍁



            🍁 *विचार संजीवनी* 🍁


अपना अवगुण अपने को दीखने लग जाए यह बहुत बढ़िया बात है । यह जितना स्पष्ट दिखेगा उतना ही उस अवगुण के साथ संबंध- विच्छेद होगा यह एक बड़े तत्व की बात है।


जब साधक को अपने में दोष दिखाई देता है, तब वह उससे घबराता है और दुखी होता है कि क्या करूं, मैं साधक कहलाता हूं और दशा क्या है मेरी ! तो यह दुखी होना अच्छा ही है। परंतु यह दोष मेरे में है ऐसा मानना अच्छा नहीं ।  ध्यान दें साधक के लिए बहुत बढ़िया बात है ।  जैसे आंख में लगा हुआ अंजन आपको नहीं दीखता, पर दूसरी सब चीजें दीखती हैं, ऐसे ही जब तक अवगुण अपने भीतर रहता है, तब तक वह स्पष्ट नहीं दीखता और जब अवगुण दीखने लगे, तब समझना चाहिए कि अब अवगुण मुझसे कुछ दूर हुआ है। अगर दूर ना होता तो दीखता कैसे ?  जितना स्पष्ट, साफ दीखे उतना ही अपने से दूर जा रहा है। अत्यंत दूर की वस्तु और अत्यंत नज़दीक की वस्तु--दोनों ही आंखों से नहीं दीखती।  इसलिए अवगुण देखने पर एक प्रसन्नता आनी चाहिए कि अब दोष मेरे में नहीं है, अब वह निकल रहा है मिट रहा है।  भूल तभी होती है जब साधक उसे अपने में मान लेता है। अपने में दोष को मान लेना बहुत बड़ी गलती है।


राम !             राम !!            राम !!!


परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज
*साधन-सुधा-सिंधु*, पृ. सं ५९४