सूर्य_को_अर्ध्य_देना_बहुत_लाभदायक_है

#सूर्य_को_अर्ध्य_देना_बहुत_लाभदायक_है 


जिस समय हम सूर्य को अर्ध्य दान देते है, उस समय जल की धारा पृथ्वी पर पड़ती है । सामने से सूर्य की किरणे उस अर्ध्य धारा के जल पे पड़कर उसके अंदर से पास करके ( उसको बेध करके ) हमारे ऊपर तथा सामने आंखों पर पड़ते है। उससे हमारे नेत्रों की ज्योति बढ़ती है, तथा नेत्रों के रोग दूर होते है  ।


इसमें वैज्ञानिक रहस्य यह है, की सूर्य संसार के नेत्र है, हमारे नेत्रों में भी सूर्य के तेज के प्रकाश की किरण है, सूर्य में सातों रंग होते है, विज्ञान से यह सिद्ध होता है की जिस वस्तु पर सूर्य की सातों किरण पड़कर वापस नही लौटती, उस वस्तु का रंग काला होता है, उसी में किरणे प्रवेश कर जाती है, जहां से किरणे वापस चली जाती है, उसका रंग सफेद होता है। हमारी आंख की काली पुलती में सूर्य की सारी किरण जल के बीच से पास होकर जल से उतपन्न विधुत शक्ति का ओर भी वेग तथा प्रकाश लेकर प्रवेश कर जाती है, ओर जीवनदायिनी पोषण शक्ति प्रदान करती है। जलधारा के बीच मे से किरणों का आना, एक विशेष लाभदायक विधुत शक्ति को उतपन्न करके लाभ पहुंचाता है, ओर तत्सम्बन्धी सारी कमी को पूरा करता है ।।


" सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च " ( यजुर्वेद - ७/ ४२ )अर्थात सूर्य स्थावर जंगम प्रदार्थो की आत्मा है, सूर्य भगवान के प्रकाश से ही सारा जगत प्रकाशित तथा अनुप्राणित होकर कार्यशील होता है। अतः धार्मिक दृष्टि से यदि हम प्राण तेज तथा बुद्धि के अधिष्ठाता सूर्य भगवान की आराधना करके अर्ध्य दान करें, तो उचित ही है, ओर इससे हमारा लाभ होता है। इस मंत्र से अर्ध्यदान करना चाहिए ।


एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते..
अनुकम्पय मां देवी गृहाणा‌र्घ्यं दिवाकर


अर्थात सहस्त्रकिरणों वाले , तेज की राशि, जगत के स्वामी सूर्यभगवान मेरे ऊपर कृपा कीजिये, ओर भक्ति के द्वारा मेरे द्वारा प्रदान किया हुआ यह अर्ध्य स्वीकार कीजिये ।।


 सूर्य देव को जल चढ़ाने का सबसे पहला नियम यह है कि उन्हें प्रात: 8 बजे से पहले ही अर्घ्य दे देना चाहिए। नियमित क्रियाओं से मुक्त होकर और स्नान करने के बाद ही ऐसा किया जाना चाहिए। सूर्य को जल देने के लिए शीशे, प्लास्टिक, चांदी आदि किसी भी धातु के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सूर्य को जल देते समय केवल तांबे के पात्र का ही प्रयोग उचित है


सूर्य को जल देते समय आपका मुख पूरब दिशा की ओर ही होना चाहिए। अगर कभी पूरब दिशा की ओर सूर्य नजर न आएं तब ऐसी स्थिति में उसी दिशा की ओर मुख करके ही जल अर्घ्य दें। सूर्य को जल देते समय आप उसमें पुष्प और अक्षत (चावल) मिला सकते हैं। साथ ही साथ अगर आप सूर्य मंत्र का जाप भी करते रहेंगे तो आपको विशेष लाभ प्राप्त होगा। लाल वस्त्र पहनकर सूर्य को जल देना ज्यादा प्रभावी माना गया है, जल अर्पित करने के बाद धूप से पूजा भी करनी चाहिए।


जिनकी नौकरी में परेशानी चल रही हो वह नियमित सूर्य को जल देना शुरु करें तो उच्चाधिकारी से सहयोग मिलता है और मुश्किलें दूर होती हैं।


ज्योतिषविद्या के मुताबिक हर दिन सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति की कुंडली में यदि शनि की बुरी दृष्टि हो तो उसका प्रभाव भी कम होता है। जो व्यक्ति विशेष रूप से रोजाना ऐसा करता है तो इससे उसके जीवन पर पड़ने वाले शनि के हानिकारक प्रभाव भी कम हो जाते हैं। चंद्रमा में जल का तत्व निहित होता है और जब हम सूर्य को जल देते हैं तो न सिर्फ सूर्य बल्कि चंद्रमा से भी  बनने वाले शुभ योग स्वयं ही व्यक्ति की कुंडली में विशेष रूप से सक्रिय हो जाते हैं।।