सेना को और अधिक मजबूत करने की आवश्यकता: मेजर दीपक गुलाटी

 मेरठ




कारगिल जैसी किसी भी घटना को अब रोकने के लिए सेना के हाथों को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही, सरकार को  पूर्व सैनिकों के लिए भी एक आयोग का गठन करना चाहिए। यह बात कारगिल युद्ध के हीरो रहे मेजर दीपक गुलाटी ने कही। 

मेजर गुलाटी भारत तिब्बत समन्वय संघ के कारगिल विजय दिवस पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे।

मेजर गुलाटी ने कहा कि कारगिल युद्ध अभी तक लड़े गए बाकी युद्धों से बिल्कुल अलग तरह का युद्ध था । कारगिल का युद्ध 12 हजार से 16 हजार फीट की ऊंचाई पर लड़ा गया था। भारतीय सेना के लिए यह इस तरह का यह पहला युद्ध था । अन्य किसी भी साधारण युद्ध में अटैकर वर्सेस डिफेंडर का अनुपात 3 व 1 का होता है लेकिन कारगिल युद्ध में परिस्थितियां इतनी कठिन थी कि वहां पर यह अनुपात 9 व 1 का  था । दुश्मन ऐसी जगह पर बैठा था कि वहां से वह सीधे हमारी आर्मी के जवानों के  सिर का निशाना लगा सकता था ।

मैदानी तोपखाना यानी कि 4 फील्ड रेजीमेंट में तैनात रहे कैप्टन दीपक गुलाटी ने भारतीय तोप खाने की विशेषता बताते हुए कहा कि कारगिल युद्ध ने यह प्रमाणित किया कि भारतीय तोपखाना यानी आर्टिलरी कोई सपोर्टिंग आर्म नही हैं  बल्कि एक फाइटिंग आर्म है।

पूर्व सैनिकों की पीडा व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि सेना की सेवासे वापस आने के बाद एक सैनिक के लिए सिविल सोसाइटी में एडजस्ट होना काफी मुश्किल होता है इसलिए हमेशा उनकी मदद करें। उन्होंने कहा कि देश में जिस तरह बहुत सारे आयोग बने है,  उसी प्रकार पूर्व सैनिकों के लिए भी आयोग का गठन करना चाहिए।


वेबिनार में  वायुसेना की भूमिका की चर्चा करते हुए ग्रुप कैप्टन जी एस वोहरा ने कहा कि कारगिल का युद्ध तीन मई 1999 को शुरू हुआ था और 26 जुलाई 1999 तक चला था। 11 मई को आर्मी ने एयरफ़ोर्स से हेलीकॉप्टर्स की मांग की लेकिन 25 मई को एयरफ़ोर्स को हेलीकॉप्टर्स के इस्तेमाल की परमिशन मिली और तब भी एलओसी पार करने की परमिशन नहीं मिली ।

पूरे देश की सेना सभी सीमाओं पर हाई अलर्ट पर थी । अवंतीपुर, श्रीनगर और लेह के एयर बेस पर एयर फोर्स तैनात थी । ग्रुप कैप्टन वोहरा ने कहा कि हमने पाकिस्तानी सेना का मुकाबला करने के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल किया था। 

पहला टोही था, जिसका अर्थ है कि पायलट जगुआर विमान से जा के क्षेत्र की रेकी करते थे।  दूसरा मिग 21 के साथ हवाई हमला था और तीसरा था युद्ध क्षति आंकलन।

उन्होंने कहा कि इस मिशन को "ऑपरेशन सफेद सागर" कहा गया। वास्तव में यह थल सेना और वायु सेना का संयुक्त अभियान था लेकिन शुरू में काफी समय केवल परमिशन देने में बर्बाद हुआ और लगभग 20 दिनों के युद्ध के बाद ही वायु सेना ऑपरेशन में शामिल हुई। कारगिल युद्ध से हमें जो सबक सीखने की जरूरत है, वह यह है कि जब ऐसी कोई स्थिति पैदा होती है तो सेना और वायु सेना को संयुक्त रूप से शुरुआत में ही मिशन की योजना बनानी चाहिए।

वेबिनार के समन्यवक कर्नल हरि राज सिंह राणा ने इस मौके पर कहा कि कारगिल युध्द दुनिया के कठिन युद्धों में एक था। लेकिन भारत की सेना के अदम्य साहस के सामने दुश्मन कहीं का न रहा। बीटीएसएस के राष्ट्रीय महामंत्री विजय मान ने कहा कि कारगिल युद्ध कहने को भारत व पाक के बीच लड़ा माना गया लेकिन चीन ने इस लड़ाई में पीछे से मदद पाकिस्तान की कर रहा था। इस अवसर पर गोरक्ष  प्रांत के युवा विभाग के अध्यक्ष व जाने माने कवि पंकज प्रखर के गीत, छंदों व कविताओं ने देशभक्ति की अलख जगा दी। "सिंह गर्जना वाली धरती बिल्कुल मौन नही होगी।शकुनी की चालों में फस कर देखो द्रोण नही होगी।जब शंकर निज नयन तीसरा डमरू के संघ खोलेगा। तो पाकिस्तान के संग चीन भी भारत की जय बोलेगा।" ने वेबिनार में समां बांध दिया। इस अवसर पर कर्नल राजेश तंवर ने भी अपने विचार रखे। वेबिनार का संचालन  शिमला से अखिलेश पाठक ने किया। वेबिनार में देश-विदेश से कुल 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।