दही खाने के फायदे ,नुकसान और सेवन में सावधानियां

दही खाने के फायदे ,नुकसान और सेवन में सावधानियां | 


दही क्या है / परिचय :


दही दूध की संतान है। दूध को दो उबाल देकर ठंडा करके चौड़े मुँह के बरतन में जामन (खट्टा) डालकर रख दिया जाता है; इसमें बैक्टीरिया पैदा होकर दूध को दही में बदल देते हैं। स्वाद और गुण के आधार पर वैद्यकों ने दही कई प्रकार की बताई है-जो दही दूध की तरह ही, यानी कुछ जमा हो, कुछ न जमा हो, ऐसी दही ‘मंद दही’ कही जाती है। यह अपक्व होती है, अतः इसका सेवन नहीं करना चाहिए। यह वात, पित्त, कफ और दाह उत्पन्न करती है। जो दही अच्छी तरह जमा हो, मधुर एवं मामूली खटास लिये हुए हो, वह ‘स्वादु दही’ कहलाती है। यह दही खाने योग्य, रक्त-पित्त को साफ करनेवाली एवं पाचक होती है। जो दही भली प्रकार जमा हुआ तो होता है, परंतु मधुर और कसैला होता है, वह ‘स्वादुम्ल दही’ कहा गया है। यह भी खाने योग्य होता है। जिस दही में मिठास दबकर खट्टापन उभर आता है, वह दही ‘अम्ल दही’ कहलाती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करनेवाली, रक्तपित्त तथा कफ को बढ़ाती है। जिस दही में खट्टापन इतना ज्यादा हो कि खाने से दाँत ही खट्टे हो जाएँ, रोंगटे खड़े हो जाएँ और गले में जलन होने लगे, उसे ‘अत्यम्ल दही’ कहा जाता है। यह अग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, रक्त विकार पैदा करनेवाला, वायु तथा पित्त को पैदा करनेवाला है। अतः दही का सेवन देखभाल कर, सोच-समझकर ही करना चाहिए।


दही के गुणधर्म :


✦निघंटुकारों तथा वैद्यकों ने दही को अग्नि-प्रदीपक, स्निग्ध, कसैला, भारी, पाक में खट्टा, मल को रोकनेवाला, पित्त, रक्त-विकार, सूजन, मेद तथा कफ पैदा करनेवाला बताया है।
✦यह मूत्रकृच्छ्, जुकाम, ठंड लगकर चढ़नेवाला बुखार, विषम ज्वर, अतिसार और दुबलेपन में लाभदायक है।
✦यह बल-वीर्य बढ़ानेवाला है।
✦ चरक की सम्मति में दही स्वादु, बलकारक, रुचि बढ़ानेवाला, दीपन, ग्राही, संग्रहणी में हितकर है। ✦मीठा दही गाढ़ा, वीर्यवर्धक, भारी एवं ठंडा है।
✦ फीका दही मूत्र लानेवाला, दाहकारक और भारी है, लेकिन खट्टा दही रक्त को बिगाड़नेवाला, पाचक और अग्निदीपक होता है।
✦बेहद खट्टा दही पाचक, पर जलन पैदा करनेवाला है।
✦ चीनी मिला दही पित्त, दाह, प्यास को शांत करनेवाला और तृप्तिदायक तथा गुड़ मिला दही धातुवर्धक, भारी एवं वातनाशक होता है।
✦गाय के दूध का दही मधुर, खट्टा, रुचिकर, अग्नि-प्रदीपक, वायुनाशक तथा सब दहियों में अधिक गुणकारी है।
✦भैंस के दूध का बना दही अत्यंत स्निग्ध, कफकारक, वायु तथा पित्तनाशक, पाक में मधुर, वीर्यवर्धक, भारी तथा रक्त को बिगाड़नेवाला है।
✦ बकरी के दूध का दही उत्तम, दस्त रोकनेवाला, हल्का, त्रिदोषनाशक, अग्नि-प्रदीपक तथा श्वास-कास, अर्थ, क्षय एवं दुबलेपन में हितकर है।
✦ इसके अलावा गरम करके जमाए दूध का दही रुचिकारक, स्निग्ध, उत्तम गुणवाला, पित्त तथा वायु को हरनेवाला, सप्त धातुओं तथा जठराग्नि को बढ़ानेवाला होता है।
✦मलाई निकालकर जमाया दही दस्त रोकनेवाला, ठंडा, पचने में हल्का, वायुकारक, मल को रोकनेवाला, अग्नि-प्रदीपक, रुचिकारक, ग्रहणी रोग का नाश करनेवाला होता है,
✦परंतु छाना हुआ दही अत्यंत स्निग्ध, कफकारक, वायुनाशक, बलवर्धक, भारी, पौष्टिक, रुचि पैदा करनेवाला एवं मधुर होता है।
✦वैद्यकों की दृष्टि में दही का पानी दस्तावर, गरम, बवासीर, कब्ज, शूल तथा दमा का नाश करनेवाला है।
✦दही की मलाई दस्तावर, भारी, वीर्यवर्धक और अग्नि को मंद करनेवाली है।
✦ दही का रायता, जिसमें नमक, मिर्च, जीरा, पुदीना आदि मसाले तथा लौकी, गाजर, बथुआ आदि डालकर बनाया हो, वह पाचक, रुचिकारक एवं हृदय के लिए हितकर होता है।
✦दही की लस्सी,जो खाँड़ एवं कच्चा दूध डालकर बनाई हो, वह शीतल, तृषा एवं गरमी को शांत करनेवाली, थकान मिटानेवाली एवं तृप्तिकारक होती है।


दही के उपयोग :


✥दही का अधिकतम उपयोग खाने में किया जाता है, फिर भी दही से मट्ठा, रायता, लस्सी आदि बनाए जाते हैं।
✥दही से मढ़ा अलग कर मक्खन-घी बनाया जाता है।
✥ पूरे भारत में यह हर ऋतु में नाना व्यंजनों में उपयोग की जाती है, दही-भल्ला इसके बिना बेमजा है।
✥ स्वादु खस्ता बनाने के लिए कचौड़ी के आटे में इसे डाला जाता है।
✥ब्रज क्षेत्र में दही-बूरा की दावत अहम मानी जाती है, यहाँ मिठाइयों को उतना पसंद नहीं किया जाता है।
 ✥बिहार प्रांत में दही-चूड़ा-चीनी अत्यंत लोकप्रिय व्यंजन है।


दही के फायदे व औषधीय उपयोग : 


दही बल और वीर्य की वृद्धि करती है, अतः घरेलू चिकित्सा में बड़ी उपयोगी है। दही में प्रोटीन की क्वालिटी बढ़िया होती है। दही जमने की प्रक्रिया में विटामिन ‘बी’, विशेषकर थाइमिन, रिबोफ्लेविन एवं निकोटिनाइड की मात्रा दुगुनी हो जाती है। दूध की अपेक्षा दही सरलता से पच जाती है। यह भाँग का नशा उतारने में भी कारगर है। खूनी बवासीर में बेहद फायदेमंद तथा बेसन मिलाकर दही में उबटन करने से शरीर की दुर्गंध का नाश कर त्वचा को सुंदर-चमकदार बनाती है।
नियमित दही का सेवन करनेवालों को अनिद्रा, अपच, दस्त एवं गैस की तकलीफें नहीं होतीं। भोजन के साथ दही लेने से भोजन शीघ्र पचता है तथा आँतों और आमाशय की गरमी नष्ट होती है। हालाँकि दूध एवं दही के रासायनिक घटक लगभग समान होते हैं। फिर भी दूध की अपेक्षा जल्दी पचने एवं शरीर में कोलेस्टरॉल का स्तर सामान्य बनाए रखने के कारण दही दूध से श्रेष्ठ है। दही में पौष्टिकता भी अधिक है। इससे अनेक रोगों का घरेलू उपचार संभव है


1-दस्त : 
पतले दस्त या पेट में मरोड़ होने की स्थिति में पतले दही के साथ ईसबगोल लेने से फायदा होता है। साथ में दही के साथ खिचड़ी खानी चाहिए।
2-बवासीर :
मंदाग्नि, बवासीर के रोगी को एक गिलास मथा हुआ दही भुने हुए जीरे व सेंधा नमक के साथ लेना चाहिए।


3-अपच, बदहजमी :
उदर रोगों, जैसे अपच, कब्ज, बदहज्मी में दही का सेवन भुने हुए जीरे व सेंधा नमक के साथ करने से फायदा होता है।


4-बीमारी के बाद कमजोरी :
बीमारी या किसी अन्य कारण से शरीर का वजन कम रहा हो तो दही में किशमिश, छुहारा, मूंगफली मिलाकर खाने से वजन तेजी से बढ़ता है।


5-रक्तस्राव :
शरीर में रक्तस्राव होने पर दही में नमक की तरह जरा सी फिटकरी पीसकर मिलाकर पीने से हर प्रकार का रक्तस्राव रुक जाता है।


6-हड्डी-नाखून मजबूत :
चूंकि दही में कैल्सियम अधिक मात्रा में होता है, इसके नियमित सेवन से हड्डियाँ, दाँत तथा नाखून मजबूत होते हैं। शरीर में यह कैल्सियम की कमी को पूरा करती है।
7-चेहरे की सुंदरता :
नित्य ही चेहरे पर दही की मालिश करने पर त्वचा मुलायम होकर निखर जाती है। दही में यदि बेसन मिलाकर त्वचा पर मलें या उबटन करें तो त्वचा की सुंदरता बढ़ जाती है। इससे मुँहासे दूर होते हैं। गरमियों में त्वचा पर दही मलने से धूप नहीं सताती है।


8-उच्च रक्तचाप :
उच्च रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर में दही को लहसुन के साथ खाने से फायदा होता है। प्रातः के भोजन में इसे नियमित खाना चाहिए।


9-केश विकार :
अगर डेंड्रफ (रूसी) की शिकायत है तो दही को नहाने से पहले बालों की जड़ों में लगाएँ। अगर कील-मुँहासे की शिकायत है तो दही के साथ बेसन मिलाकर पेस्ट बना लें। फिर थोड़ा-थोड़ा करके चेहरे पर लगाएँ। इससे कील-मुँहासे दूर होंगे।


10-ताकत के लिए : 
प्रात:काल दही को आधा बिलोकर एक बड़ा गिलास गुड़ के साथ नित्य सेवन किया करें। यह दूध से ज्यादा ताकत देती है। बुद्धि का विकास करती है। इससे दिमाग शांत और ठंडा रहता है, लेकिन चाय बिल्कुल न पीएँ।


10-नेत्र ज्योति :
आँखों की कमजोरी या धुंधला दिखता है अथवा दृष्टि क्षीण हो गई है तो प्रात:काल दही को आधा बिलोकर उसमें भुना-पिसा जीरा डालकर नित्य सेवन किया करें। चमत्कारी लाभ होगा।


12-दाह शांति के लिए :
गरमियों में गरमी ज्यादा सताती है, शरीर में जलन महसूस होती है, शरीर पर घमोरियाँ निकल पड़ती हैं तो दही को बिलोकर उसमें हरा पोदीना पीसकर मिला लें, इसमें से प्रात:काल एक बड़ा गिलास नित्य सेवन किया करें।


13-लू तथा गरमी :
गरमी में जब लू चलती हैं, तब घर से बाहर निकलना पड़े तो घर से दही या मट्ठा, जिसमें जीरे का तड़का लगा हो, पीकर चलें, तो गरमी और लू का कोई असर नहीं होगा। इसकी तरावट लंबे समय तक बनी रहती है। यह अपने आप में पूर्ण भोजन भी है। अतः इसका सेवन किसी-न-किसी रूप में अवश्य करना चाहिए।


इसके अलावा वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि दही रक्त की चरबी अर्थात् कोलेस्टरॉल को कम करता है। इससे शरीर में नव-चेतना का संचार होता है, सेवन करनेवालों की यौन-क्षमता में वृद्धि होती है। दही के सेवन से पुरुषों के वीर्य में वृद्धि तथा स्त्रियों के गर्भाशय का विस्तार भी होता है। प्रतिदिन दही सेवन करने से लड़कियों के स्तनों के आकार में परिवर्तन आता है। दही बुद्धिवर्धक तथा दिमाग को ठंडा रखती है। भारतीय ग्रामीण समाज में दही भोजन का अभिन्न अंग है। भारतीय किसान के घर की रसोई में कोई सब्जी बने या न बने, परंतु दही अवश्य उपलब्ध रहता है। गरमियों में दही अमृत के समान है।


दही खाने के नुकसान व उपयोग में सावधानियाँ : 


दही बेशक अमृत के समान है, लेकिन इसके रखरखाव तथा सेवन में कुछ सावधानियाँ अवश्य रखनी चाहिए, जिससे यह लाभ की जगह हानि न कर पाए


• दही वैसे बेहद उपयोगी एवं स्वास्थ्यवर्धक है, परंतु शरद और बसंत में रात को दही नहीं खाना चाहिए। यदि खानी ही तो इसमें शक्कर, मूंग दाल, आँवला डालकर या जीरे का तड़का लगाकर खाएँ।
• दमा, श्वास, खाँसी, कफ, शोध, रक्त-पित्त और बुखार में दही का सेवन कदापि न करें।
•अधिक दही खाने के नुकसान -दही की तासीर ठंडी है, इसलिए अधिक मात्रा में इसके सेवन से सर्दी-जुकाम की आशंका हो सकती है। साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि दही का सेवन दिन में किया जाए, रात को नहीं।
• दही को ताँबे, पीतल, काँसे और एल्युमीनियम के बरतनों में नहीं रखना चाहिए और न ही इन धातुओं के बरतनों में दही को खाना ही चाहिए, क्योंकि इसमें दही जहरीला हो जाता है। दही का उपयोग हमेशा मिट्टी, काँच अथवा स्टील के बरतनों में ही करना चाहिए।
• दमा और फाइलेरिया के रोगियों को छोड़कर स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी दही का सेवन कर सकते हैं। दही तभी पर्याप्त लाभदायक होता है, जब उसके सभी पोषक तत्त्व उसमें मौजूद हों। हमेशा ताजे दही का उपभोग करना चाहिए, क्योंकि उसी में सभी पोषक तत्त्व रहते हैं। बहुत देर तक फ्रिज में रखे दही तथा खट्टे दही में पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।