गरीबों का पेट भरने वाले 'लंगर बाबा' को पद्मश्री, जमीन बेचकर 39 सालों से खिला रहे हैं खाना

चंडीगढ़। जमीन बेचकर बिना किसी छुट्टी के रोजाना लोगों का पेट भरने वाले चंडीगढ़ के ‘लंगर बाबा’ को केंद्र सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा की है। उम्र के 85 वसंत देख चुके जगदीश आहूजा को लोग प्यार से ‘लंगर बाबा’ के नाम से पुकारते हैं। पुरस्कार की घोषणा के बाद जगदीश आहूजा का कहना है कि पद्मश्री की जगह उनका इनकम टैक्स माफ कर दिया जाए, जिससे कि हमेशा जरूरतमंदों को खाना मिलता रहे और कोई भूखे पेट न सोए। 


 पीजीआई चंडीगढ़ के सामने बीते 39 सालों से जगदीश आहूजा लगातार लंगर लगा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी कई प्रॉपर्टी तक बेच दी। उनका कहना है कि लंगर सेवा करके उन्हें काफी सुकून मिलता है। पद्मश्री की घोषणा के बाद अमर उजाला से विशेष बातचीत में जगदीश आहूजा ने बताया कि पटियाला में उन्होंने गुड़ और फल बेचकर अपना जीवनयापन शुरू किया है। 1956 में लगभग 21 साल की उम्र में चंडीगढ़ आ गए। उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था। यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचना शुरू किया।


उन्होंने बताया कि मुझे याद है कि चंडीगढ़ में आने के दौरान शायद 4 रुपये 15 पैसे हाथ में थे। यहां आकर मुझे धीरे-धीरे पता लगा कि मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता। पटियाला में फल बेचने के कारण मैं इस काम में माहिर हो चुका था। बस फिर मैंने काम शुरू किया और मेरी किस्मत चमक उठी। मैं अच्छे पैसे कमाने लगा। जगदीश आहूजा सेक्टर-23 डी में रहते हैं।


लंगर वाले बाबा ने बताया कि जब लोगों को भूखे पेट सड़क पर देखता हूं तो बैचेनी होने लगती थी। अपने बेटे के आठवें जन्मदिन पर मैंने 100 से 150 बच्चों को खाना खिलाना शुरू किया। लगभग 18 साल तक सेक्टर-23 में घर के पास लंगर चलाया। उसके बाद 2001 से पीजीआई के बाहर हर दिन लंगर लगाने लगा। यहां उत्तर भारत के दूरदराज इलाकों से आने वाले सैकड़ों मरीज व उनके परिजन आसानी से भोजन ग्रहण करते हैं। मुझे इस बात का सुकून मिलता है कि मेरी वजह से किसी को भूखा नहीं सोना पड़ता।