चोट लगने का घरेलू इलाज
चोट लगने पर (जब खून न बहे) घरेलू उपाय :
1) चार भाग नारियल की गिरी में एक भाग पिसी हुई हल्दी मिलाकर पोटली बाँधकर गरम-गरम सेक करना चाहिए।
2) डेढ़ तोला गेहूँ जलाकर उसकी राख में उतना ही गुड़ और घी मिलाकर कुछ दिन तक चाटने से चोट की पीड़ा में लाभ होता है।
3) सेंधानमक तथा बूरा मिलाकर फंकी लेने से चोट की पीड़ा मिट जाती है।
4) सरपंखा के पत्तों को बकरी के दूध में पीसकर चोट पर लेप करने से दर्द शान्त हो जाता है।
चोट लगने पर खून रोकने के उपाय :
1) बर्फ या पानी की पट्टी बाँधने से खून बहना बन्द हो जाता है।
2) गेंदे के फूल या पत्तियों को पीसकर बाँधने से चोट का खून बहना बन्द हो जाता है।
3) तारपीन के तेल की पट्टी बाँधने से कटे हुए स्थान से खून आना बन्द हो जाता है।
4) गूलर के पत्ते कूटकर उनका रस लगाने से खून बन्द होता है।
5) तीन ग्राम सोडा-बाई-कार्ब और तीन ग्राम सफेद फिटकरी कच्ची मिलाकर पीस लें। एक बार दवा खाने से ही दर्द ठीक हो जाता है तथा खून बहना भी बन्द हो जाता है।
मोच के घरेलू उपचार :
1) तिलों की खली को पानी में कूटकर पकाएँ और मोच के ऊपर गरम-गरम बाँध दें। मोच ठीक हो जायेगी।
2) मोच के स्थान पर चने बाँधकर उन्हें पानी से भिगोते रहें-जैसे-जैसे चने फुलेंगे, मोच को खींच लेंगे।
3) मोच के स्थान पर शहद और चूना मिलाकर हल्की मालिश करने से आराम होता है।
4) फिटकरी के 3 ग्राम चूर्ण को आधा किलो दूध के साथ लेने से मोच और भीतरी चोट ठीक होती है।
सूजन दूर करने के घरेलु उपाय :
1) ढाक के गोंद को पानी में गलाकर लेप करने से चोट की सूजन ठीक हो जाती है।
2) एलुए को चूने के पानी के साथ या गरम पानी के साथ पीसकर लेप करने से चोट और मोच की सूजन मिट जाती है।
3) अफीम और अण्डे की सफेदी मिलाकर लेप करने से हर तरह की सूजन मिट जाती है।
4) अनार का छिलका और छुहारा को एक साथ पीसकर लेप करने से सूजन ठीक हो जाती है।
5) सेमर की छाल की राख को तिली के तेल में मिलाकर लेप करने से सूजन मिट जाती है।
6) तारपीन के तेल की मालिश करने से चोट में आराम मिलता है तथा सूजन : दूर होती है।
7) चूना और सज्जी पीसकर लेप करने से चोट ठीक हो जाती है।
8) हल्दी और चूना पीसकर लेप करने से चोट का दर्द मिट जाता है।
9) सरसों के बीज, लहसुन और पहाड़ी-प्याज पीसकर लेप करने से चोट की पीड़ा दूर हो जाती है।
10) सहजने के पत्ते और. तेल बराबर मात्रा में लेकर पीस लें इस मिश्रण को लगाने से चोट और मोच की पीड़ा मिट जाती है।
11) सूजन कम करने तथा पीड़ा घटाने के लिए, सरसों के तेल में हलदी डालकर गरम करें। इसे चोट लगे स्थान पर लगाकर पट्टी बांधे।ऐसा करके रोगी को राहत पहचा सकते है।
12) यदि चोट अधिक है। खून नहीं बहा। सुजन है। पीड़ा है। कोई और साधन भी नहीं। ऐसे में शर्तिया इलाज की आवश्यकता है। अंदरूनी चोट की पीड़ा कम करने के लिए एक प्याज लें। इसे कूटकर इसमें हलदी, थोड़ा नमक तथा तिल कूटकर डालें। सबको गरम करें। अब इसे मोटे सूती कपड़े में रखकर चोट वाले स्थान पर बांधे। दर्द कम होगा। सुजनं घटेगा। रोगी को चैन मिलेगा।
चोट की आयुर्वेदिक दवा :
1• नीम के पत्ते, सिन्दुआर के पत्ते, पत्थर चूर (पाषाणभेद) के पत्ते प्रत्येक 100 ग्राम लेकर जल से धोकर सिल पर पीसकर रस निचोड़ कर कपड़े से छान लें । फिर कड़ाही में डालकर 250 मि.ली. नारियल के तैल में पकाकर (मन्दाग्नि पर पकायें) तेल सिद्ध होने पर इसमें विशुद्ध कार्बोलिक एसिड 125 मि.ली. मिलाकर सुरक्षित रखलें । यदि मरहम बनाना चाहते हों तो सफेद मोम को पिघलाकर इसमें मिलालें । मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें । कटे घाव, जख्म पर इस मरहम को दिन में 2-3 बार लगायें । अत्यन्त लाभप्रद है ।
2• व्रणरोपण रस (रस योग सागर) 1 गोली को मधु, शुद्ध गूगल या ताजे जल के साथ दिन में 2 बार सेवन करें। यह कटे या आछातीय व्रण, जख्म, समस्त नाड़ी व्रण और मकड़ी के विष से उत्पन्न व्रण में लाभप्रद है ।
3• महामन्जिष्ठारिष्ट (शारंगधर संहिता) तथा सारिवाद्यासव (भै. र.) प्रत्येक 15 मि.ली. समभाग जल मिलाकर भोजनोपरान्त दिन में 2 बार सेवन करें । फोड़ों और घावों के दर्द में पूर्ण लाभ हेतु अत्यन्त उत्तम औषधि है ।
4• जात्यादिघृत (शारंगधर संहिता) बाजार में उपलब्ध है अथवा स्वयं बनालें—नीम के ताजे पत्ते, पटोल के पत्ते, मैनफल, हल्दी, दारु हल्दी, कुटकी, मजीठ, मुलहठी, करन्ज के पत्ते, नेत्रवाला और अनन्त मूल प्रत्येक 12 ग्राम लें। सभी को एकत्रकर जल में पीसकर लुगदी बनालें । इस लुगदी से चार गुणा गौघृत और 16 गुणा अधिक जल मिलाकर मन्द आग पर पाक करते हुए घृत सिद्ध करलें । फिर इसे सुरक्षित रखलें । यदि इसे और लाभकारी बनाना चाहते हों तो इसे छानकर आवश्यक मात्रा में मोम एवं नीला तूतिया का फूला 12-12 ग्राम मिलाकर लेप जैसा मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें । इसे घाव, फोड़े-फुन्सी पर दिन में 2-3 बार लगाकर पट्टी बाँधा करें । यह दुष्ट व्रण, फोड़े, फुन्सी, नासूर, गम्भीर व्रण तथा अन्य व्रणों में अतिशीघ्र लाभ प्रदान करने वाला योग है।
5• व्रणान्तक रस (रसयोग सागर) आवश्यकतानुसार 1 से 3 गोलियाँ तक घी के साथ दिन में 2 बार प्रयोग करें । यह प्रत्येक प्रकार के कटे, जले एवं घावों के लिए लाभप्रद है । उपदंश से उत्पन्न व्रणों में भी लाभकारी है। भोजन में गाये, भैस का घी अधिक प्रयोग करें ।
घर पर बनाना चाहें तो निर्माण विधि यह है— शुद्ध सफेद सोमल 1 भाग, शुद्ध सिंगरफ 2 भाग, श्वेत कत्था 2 भाग सभी को काले पत्थर वाले उत्तम खरल में मिलाकर अदरक के स्वरस में 3 दिन तक खरल करके सरसों के आकार की गोलियाँ बनालें । इन्हें सुखाकर काँच की कार्क युक्त शीशी में सुरक्षित रखलें ।