निमोनिया का कारण ,लक्षण और उपचार

*निमोनिया का कारण ,लक्षण और उपचार :*


*निमोनिया क्या है ? :*


★  जब किसी कारण से फेफड़े में सूजन आ जाती है तो उसे निमोनिया कहते हैं।
★  निमोनिया रोग में केवल एक ही फेफड़ा सूजता है लेकिन जब किसी कारण से दोनों फेफड़ों में सूजन आ जाती है तो उसे डबल निमोनिया कहते हैं।
★  फेफड़ों की सूजन को ही ´फुफ्फुस प्रदाह या निमोनिया´ कहते हैं। इस रोग में फेफड़े सूजकर सख्त और कठोर हो जाते हैं।
★  छोटे बच्चों में होने वाला यही रोग डब्बा रोग (पसली चलना) कहलाता है। यह रोग सन्निपात ज्वर की ही एक अवस्था है।


*निमोनिया का कारण*


★   निमोनिया का रोग मौसम बदलने, ज्यादा मेहनत करने, ज्यादा ठंड़ा पानी पीने, ठंड़ी हवा में रहने और खाने मे ज्यादातर ठंड़ी चीजों का सेवन करने आदि कारणों से होता है।
★   कुछ चिकित्सकों का मानना है कि यह रोग किसी विशेष कीटाणुओं के कारण उत्पन्न होता है।
★   इस रोग का उपचार तुरन्त न होने पर यह जानलेवा हो सकता है।


*निमोनिया के लक्षण :*


★   निमोनिया रोग से पीड़ित रोगी को पहले ठंड़ लगती है और फिर बुखार आ जाता है। रोगी की आंख व चेहरा लाल होता है, बहुत ज्यादा प्यास लगती है, जीभ मैली हो जाती है, सिर दर्द होता है, भूख कम लगती है, सूखी खांसी के दौरे पड़ते रहते हैं, छाती बहुत गर्म हो जाती है, सांस लेने में परेशानी होती है तथा फेफड़े गलने लगते हैं।
★   यह एक कठिन व फैलने वाला रोग है।
★   इस रोग में जब बुखार बहुत तेज होता है तो खांसी के साथ रोगी की पसलियों में भी दर्द होता है।
★  निमोनिया रोग से पीड़ित रोगी की छाती में कफ जमा हो जाता है और दम फूलने लगता है। सांस लेते समय छाती में कफ की आवाज आती रहती है। पसलियों के निचले हिस्से में गड्ढ़ा पड़ने लगता है, आंखे चढ़ जाती हैं, चेहरा फीका पड़ जाता है, रोगी को बड़ी बेचैनी होती है, होंठ नीले पड़ जाते हैं, पसलियों में दर्द होता रहता है और जीभ सूखकर काली पड़ जाती है।


*निमोनिया में परहेज*


★   निमोनिया के रोग में जल्दी पचने वाली चीजें खानी चाहिए और पूरा आराम करना चाहिए।
★   भोजन में परवल, तोरई, करेला, सेब, अनार, पालक तथा कुलथी का रस सेवन करना चाहिए।
★   जौ या गेहूं की रोटी खानी चाहिए। दोपहर के समय गाय के दूध में अदरक डालकर पीना चाहिए।
★   पानी को उबालकर रखकर ठंड़ा करके घूंट-घूंट पीना चाहिए।
★   खाने के बाद 8-10 कदम जरूर चलना चाहिए।
★   दूध में चीनी या चीनी के स्थान पर शहद का प्रयोग करना चाहिए।
★  चिकनाई वाले पदार्थ जैसे घी-तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।
★  कसरत, शारीरिक या दिमागी मेहनत, मैथुन, ठंड़े पानी का सेवन, क्रोध, दिन में सोना, दूध तथा दूध से बने गरिष्ठ पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
★  खटाई, पीठी तथा मैदे की मिठाई, तरबूज, मांस, मछली तथा पान का सेवन नहीं करना चाहिए।


*निमोनिया का घरेलु आयुर्वेदिक उपचार :*


1) पोदीना : 


पोदीना का ताजा रस शहद के साथ मिलाकर हर 1-1 घंटे पर सेवन करने से न्युमोनिया रोग ठीक होता है।


2) पीपल :


बच्चों की पसली चलना रोग में 2 पीपल को आग पर भूनकर पीस लें और इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में 3 बार खिलाने से बच्चों की पसली चलना बन्द होता है।


3) नीम : 


नीम के पत्तों का रस हल्का गर्म करके छाती पर मालिश करने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है।


4) बारहसिंगा : बारहसिंगा को पानी में घिसकर पसली पर लेप करने से फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) रोग समाप्त होता है।


5) मूली : 


बच्चों के सांस रोग, दमा या पसली चलना रोग होने पर मूली के बीज और काकड़ासिंगी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में घी व शहद के साथ 6 घंटे बच्चे को चटाएं। इससे दमा, सांस रोग व फुफ्फुस की सूजन दूर होती है।


6) मजीठ :


1 से 3 ग्राम मजीठ के चूर्ण को प्रतिदिन 3 बार शहद के साथ रोगी को सेवन करना चाहिए। यह फुफ्फुस की जलन, सूजन व दर्द को समाप्त करता है।


7) अडूसा : 


• बच्चों के गले और छाती में घड़घड़ाहट होने पर लाल अडूसा के पत्तों का रस 10 से 20 बूंद लेकर सुहागा की खील या छोटी पीपल में मिलाकर लें और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अन्तर पर सेवन करें। इससे छाती में जमा कफ निकल जाता है और फुफ्फुस (फेफड़ों) की सूजन दूर होती है।
• काले अड़ूसा के 4 पत्तों का रस, सहजने की छाल का रस, सामुद्रिक नमक और शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से फेफड़ों की सूजन व जलन समाप्त होती है।


8) शहद : 


निमोनिया रोग में रोगी के शरीर की पाचन-क्रिया प्रभावित होती है इसलिए सीने तथा पसलियों पर शुद्ध शहद की मालिश करना चाहिए और थोड़े से शहद गुनगुने पानी में डालकर पिलाना चाहिए।


9) आंवला :


आंवला, जीरा, पीपल, कौंच के बीज और हरड़ को लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे फुफ्फुस प्रदाह भी ठीक होता है।


10) समुद्रफल :


बच्चों के फुफ्फुस प्रदाह रोगों में समुद्रफल को पीसकर छाती और पेट पर लगाने से रोग ठीक होता है।


11) नागदन्ती


3 से 6 ग्राम नागदन्ती की जड़ का चूर्ण, दालचीनी के साथ सुबह-शाम सेवन करने से निमोनिया का रोग तुरन्त ठीक होता है।


12. भंगरैया : यदि छोटे बच्चे की छाती में घबराहट हो और खांसी आती हो तो 1 से 2 बूंद भंगरैया का रस प्रतिदिन 3 बार सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से बच्चों का डब्बा रोग ठीक होता है।



12) रानीकूल (मुनियारा) : निमोनिया के रोग में 3 से 6 ग्राम रानीकूल के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से निमोनिया रोग ठीक होता है।


13) अगस्त :


अगस्त की जड़ की छाल पान में रखकर चूसने या इसका रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से कफ (बलगम) निकल जाता है। इसके सेवन से पसीना निकलकर बुखार धीरे-धीरे कम हो जाता है।


14) गाय का मूत्र : 


गाय के मूत्र में नमक मिलाकर आधा-आधा चम्मच सुबह-शाम रोगी को पिलाने से निमोनिया रोग ठीक होता है।


15) सिनुआर : 
• 10 से 20 मिलीलीटर सिनुआर के पत्तों का रस सुबह-शाम रोगी को देने से और सिनुआर, करंज नीम और धतूरे के पत्तों को पीसकर हल्का गर्म कर छाती पर लेप करने से लाभ मिलता है। इसका लेप सीने पर लगाकर कपड़ा लपेटकर बांध देना चाहिए। इसका उपयोग कुछ दिनों तक करने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है और दर्द ठीक होता है।
• सिनुआर के पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सेवन करने से फुफ्फुस की सूजन दूर होती है।


16) सुहागा : 


• भुना हुआ सुहागा और भुना हुआ नीलाथोथा 3-3 ग्राम लेकर पीस लें और अदरक के रस में मिलाकर बाजरे के आकार की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसमें से 1-1 गोली मां के दूध के साथ दिन में 2 बार बच्चे को सेवन करने से निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह) रोग ठीक होता है।
• 1 चुटकी फूला सुहागा, 1 चुटकी फूली फिटकरी, 1 चम्मच तुलसी का रस, 1 चम्मच अदरक का रस और आधा चम्मच पान के पत्तों का रस। इन सभी को एक साथ मिलाकर शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से निमोनिया (फुफ्फुस प्रदाह, फेफड़ों की सूजन) आदि में बेहद लाभ मिलता है।


17) लहसुन : 


• 5 मिलीलीटर लहसुन का रस तथा 20 ग्राम शहद को एक साथ मिलाकर दिन में 3 बार खाने से चटाने से फेफड़ों की सूजन दूर होती है।
• 1 चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी में डालकर बच्चे को पिलाने से निमोनिया का रोग ठीक होता है।
• लहसुन की कलियों को आग में भूनकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 1 चुटकी की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करें। इससे फेफड़ों की सूजन व जलन दूर होती है।
• निमोनिया में इस रोग में एक चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी मे मिलाकर पीने से सीने का दर्द दूर होता है।


18) कपूर :


• 2 ग्राम कपूर और 10 मिलीलीटर तारपीन का तेल मिलाकर पसलियों पर मालिश करने से निमोनिया रोग में लाभ मिलता है।
• कपूर को 4 गुने सरसों के तेल में मिलाकर पसलिसों की मालिश करने से पसलियों का दर्द ठीक होता है।


19) तेजपात : 


तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेसर, कपूर, शीतल चीनी, अगर, और लौंग को मिलाकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करें। इससे फेफड़ों की सूजन में बेहद लाभ मिलता है।


20) अदरक : 


• अदरक और तुलसी का रस 1-1 चम्मच लेकर शहद के साथ सेवन करने से फुफ्फुस प्रदाह दूर होती है।
• अदरक रस में 1 या 2 वर्ष पुराना घी व कपूर मिलाकर गरम कर छाती पर मालिश करने से निमोनिया में आराम मिलता है।


21) हींग :


फुफ्फुस प्रदाह से पीड़ित रोगी को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हींग को 3-4 मुनक्के में भरकर दिन में 3 बार खाने से एक सप्ताह के अन्दर ही निमोनिया ठीक हो जाता है।


22) तुलसी : 


• 20 तुलसी के हरे पत्ते, 5 कालीमिर्च, 3 लौंग, 2 चुटकी हल्दी और एक गांठ अदरक। इन सभी को लेकर एक कप पानी में उबालें और जब पानी आधा कप बचा रह जाए तो इसे छानकर दिन में 2 बार पीएं। इस तरह यह काढ़ा लगभग 10 दिनों तक सुबह-शाम सेवन करने से फुफ्फुस प्रदाह ठीक होता है।
• तुलसी के पत्ते का रस, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर सेवन करने से निमोनिया रोग समाप्त होता है।
• 20 तुलसी के हरे पत्ते और 5 कालीमिर्च पीसकर पानी में मिलाकर पीने से निमोनिया में लाभ मिलता है।
फुफ्फुस प्रदाह (निमोनिया) के रोग से पीड़ित रोगी को नमक की पोटली बनाकर छाती पर आगे व पीछे से सिंकाई करना चाहिए। इससे कफ (बलगम) ढीला होकर बाहर निकल जाता है और दर्द व सूजन से आराम मिलता है।


होमेओपेथी में निमोनिया की सर्वोत्तम औषधि भाई राजीवदीक्षित जी व डॉक्टर वेद जी के ज्ञानानुसार aconoite 200 ch की 2 2 बून्द हर दो घण्टे पर पहले दिन अगले दिन से सुबह दोपहर शाम जब तक ठीक न हो व जस्टिसिया Q की 10 बून्द चौथाई कप पानी मे दिन में 3 बार


न्युमोनिया के प्रथम अवस्था का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :
1. ऐकोनाइट : इस औषधि का उपयोग न्युमोनिया रोग के प्रथम अवस्था में करना लाभदायक होता है। इस अवस्था में रोगी को बुखार हो जाता है, फेफड़ों में कांच की तरह कर-कर की आवाजें सुनाई पड़ती हैं, बिना जांच करे जब रोगी सांस लेता है तब यह शब्द सुनाई पड़ता है और खांसी होती है। इस अवस्था में आधे-आधे घंटे के बाद इसका उपयोग रोग का प्रभाव कम हो जाने पर किया जाता है। रोग की पहली अवस्था में बुखार आने पर रोगी को ठंड महसूस होती है, फिर तेज बुखार हो जाता है, सूखी खांसी होती है, खांसते हुए फेफड़े में दर्द होता है, कभी-कभी थूक में खून की कुछ मात्रा भी दिखाई पड़ती है, रोगी को घबराहट होती है। ऐसी अवस्था में इस औषधि से उपचार करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 3x मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
2. सल्फर :   इस रोग का उपचार करने के लिए ऐकोनाइट देने के बाद तीन से चार घंटे में लाभ नहीं हो तो सल्फर की 30 शक्ति का सेवन करें और हर तीसरे घंटे के बाद इस औषधि का प्रयोग लगभग 24 घंटे तक करते रहें। इससे लाभ होता है और 24 घंटे के बाद भी इसका उपयोग कर सकते हैं।
न्युमोनिया की द्वितीयावस्था (स्थूलावस्था) होने पर चिकित्सा :
1. ब्रायोनिया :  रोग की द्वितीय अवस्था में यदि फेफड़ों में स्राव जमा होने लगे, तब सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है और जो फेफड़ा रोग ग्रस्त होता है उस तरफ लेटने से दर्द होता है क्योंकि वह भाग दब जाने के कारण उसमें हरकत नहीं होती है। फेफड़े में स्राव जमा हो जाने की इस द्वितीयावस्था में जब स्राव जमा होने के कारण फेफड़े की दोनों परते सांस लेने पर आपस में रगड़ नहीं खाती हैं तो ऐसी अवस्था में ब्रायोनिया औषधि की 1x, 200 शक्ति का उपयोग करने से लाभ मिलता है। इस अवस्था में भी खांसी सूखी होती है, ढीली नहीं होती है, खांसते हुए दर्द होता है, सांस भारी हो जाती है, रोगी शान्त-मुद्रा में बिना हिले-डुले पड़ा रहता है। रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए इसकी 1x मात्रा 2-2 घंटे के बाद रोगी को सेवन करना चाहिए फिर कुछ लाभ मिलने पर इसकी 200 शक्ति की एक मात्रा का सेवन करना चाहिए।
2. ब्रायोनिया तथा एन्टिम टार्ट :  यदि फेफड़े में कफ जमा होने के कारण घड़-घड़ की आवाजें सुनाई दे रही हो तो ब्रायोनिया तथा ऐन्टिम टार्ट को एक दूसरे के बाद सेवन करना चाहिए। यदि ऐन्टिम टार्ट का उपयोग करने से कफ घड़घड़ाता है, ढीला हो जाए लेकिन न निकलता न हो तो इपिकाक का सेवन करना चाहिए। इन दोनों से लाभ न मिले तो कैलि कार्ब का उपयोग करना चाहिए। इन औषधियों की 6x मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
3. ब्रायोनिया तथा फॉस्फोरस : रोग की द्वितीयावस्था में ब्रायोनिया औषधि का उपयोग करना चाहिए लेकिन रोगी की शक्ति को बढ़ाने के लिए द्वितीयावस्था में इन दोनों में से एक औषधि को सुबह और दूसरी को शाम के समय में उपयोग करना चाहिए। इस रोग का उपचार करने के लिए फॉस्फोरस औषधि की 30 शक्ति का भी प्रयोग कर सकते हैं।
4. आयोडाइन :  फेफड़े की स्थूलावस्था कम हो जाना, सांस का भारीपन कम हो जाना, कफ आसानी से निकलने लगना तथा बुखार कम हो जाना। ऐसे लक्षण होने पर आयोडाइन औषधि की निम्न-शक्ति का उपयोग एक-एक घंटे के बाद करना चाहिए। आयोडाइन औषधि से उपचार करते समय इस प्रकार के लक्षणों को ध्यान में रखकर ही चिकित्सा करनी चाहिए जो इस प्रकार है- बार-बार सूखी और खुश्क खांसी होना लेकिन बलगम कम निकलना, छाती में सुई जैसी चुभन होना, गड़ने और कसकर पकड़ने जैसा दर्द होना, सांस लेने के बाद दर्द का बढ़ना, पूरे शरीर में दर्द होना, तेज प्यास लगना और कब्ज की समस्या होना आदि।
5. सल्फर : इस रोग के प्रथम तथा द्वितीयावस्था दोनों का उपचार करने के लिए सल्फर औषधि का उपयोग लाभदायक होता है। जब फेफड़ों में न्युमोनिया की द्वितीयावस्था तेज हो जाती है तब कफ को ढीला करने के लिए और फेफड़ों के कफ को बाहर निकलने के लिए इसका उपयोग करना चाहिए। कभी-कभी न्युमोनिया के बाद फेफड़ों में कड़े-स्थल (अनरिसोल्वेड पेचिस) रह जाते हैं, उस अवस्था को ठीक करने के लिए इसका उपयोग लाभकारी है।
तृतीयावस्था (परिपाकावस्था)  होने पर चिकित्सा :
1. फॉसफोरस : न्युमोनिया रोग की द्वितीयावस्था स्थूलावस्था में बदल जाए तब इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए या जब द्वितीयावस्था समाप्त होकर तृतीयावस्था (परिपाक की अवस्था) होती है जिसमें कफ फेफड़े में से निकल जाने या समाप्त हो जाने की अवस्था में इसका उपयोग कर सकते हैं। न्युमोनिया की द्वितीयावस्था में भी इस औषधि का उपयोग लाभदायक है। यदि न्युमोनिया के बीच में टाइफॉयड रोग के लक्षण दिखाई दे तो भी उपचार करने के लिए फॉस्फोरस औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।
2. हिपर सल्फर  :  फॉस्फोरस औषधि के उपयोग करने से जब कफ का कड़ापन दूर हो जाए या कफ ढीला पड़ जाए तब फॉस के बाद हिपर सल्फ औषधि की 6 या 30 शक्ति की मात्रा से उपचार करना चाहिए। वैसे इस औषधि का उपयोग न्युमोनिया रोग की अंतिम अवस्था में किया जाता है। हिपर सल्फर औषधि से उपचार करते समय इस रोग के ऐसे लक्षण को ध्यान में रखकर ही चिकित्सा करनी चाहिए जो इस प्रकार हैं- साधारण सर्दी में और सुबह के समय में खांसी बढ़ना, सीने को छूने पर दर्द असहनीय होना।
3. सल्फर :  इस औषधि की 6, 30 शक्ति से न्युमोनिया की प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय तीनों अवस्थाओं को ठीक किया जा सकता है और तीनों अवस्थाओं में इससे लाभ मिलता है। यदि फेफड़े की जलन की पहली अवस्था में या पीब पैदा होने के पहले चुनी हुई औषधि से लाभ न होने पर इसकी 2 से 3 मात्रा का उपयोग कर सकते हैं।
4. आयोडाइन : जब न्युमोनिया की तृतीयावस्था में फेफड़ों में कफ के जज्व (एब्सोरपेशन) होने के बावजूद कफ बनता जाए, बुखार होता रहे , रोगी का शरीर दिन प्रतिदिन कमजोर होता चला जाए। ऐसी अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए आयोडाइन औषधि की 1, 2 या 3 शक्ति का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
5. टयुबर्क्युलीनम :  न्युमोनिया रोग यदि वंशनुगत कारणों से हुआ हो तो चिकित्सा करने के लिए टयुबर्क्युलीनम औषधि की एक मात्रा सप्ताह में एक बार उपयोग करना लाभदायक होता है।
6. सेनेगा : न्युमोनिया रोग होने के साथ ही प्लुरिसी हो जाए तब सेनेगा औषधि की 30 शक्ति से उपचार करना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को छाती पर बोझ रखा महसूस हो रहा हो और ऐसा महसूस हो रहा हो कि फेफड़े के पीछे-पीछे रीढ़ की हड्डी के साथ जा लगे हैं तो इस अवस्था में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। शोथ की अवस्था उत्पन्न होने के बाद बायीं छाती में जगह-जगह फोड़े हो गये हों, रोगी खांसता हो, खांसते-खांसते छींके आए। रोगी की ऐसी अवस्था भी सेनेगा औषधि से चिकित्सा करनी चाहिए।
7. स्ट्रोफेन्थस : यदि न्युमोनिया में दिल की कमजोरी के कारण हार्ट फेल होने का डर हो रहा हो तो इस औषधि के मूलार्क की 6x मात्रा का प्रयोग करने से लाभ होता है। यह औषधि सिस्टोलिक प्रेशर (सिस्टोले) को बढ़ा देती है, हार्ट-मसल को शक्ति प्रदान करती है। जब यह रोग तेज हो जाता है तो दिन में स्ट्रोफेन्थस औषधि की 5 से 10 बूंदें दिन में तीन बार उपयोग करने से हृदय को शक्ति मिलती है।
8. फॉस्फोरस : न्युमोनिया होने के बीच में ही टाइफायड के लक्षण दिखाई देने लगे तो फॉस्फोरस औषधि की 30 शक्ति से उपचार करना चाहिए।
9. रैननक्युलस : न्युमोनिया होने के बाद छाती में कहीं-कहीं दर्द हो तो दर्द को दूर करने के लिए रैननक्युलस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करने से लाभ मिलता है।
10. एकोन और फास्फोरस : इस रोग के शुरुआती अवस्था में एकोन औषधिसे और इसके बाद फास्फोरस औषधि से उपचार करने पर लाभ मिलता है। इसके उपयोग करने के बाद लगभग दूसरी औषधि की जरूरत नहीं पड़ती है।
11. चेलिडोनियम : न्युमोनिया रोग होने के साथ ही यकृत में दोष उत्पन्न हो गए हो तो चिकित्सा करने के लिए इस औषधि से फायदा होता है।
12. आर्स : यह रोग यदि बूढ़े या कमजोर शरीर वाले लोगों को हो तो उसके इस रोग को ठीक करने के लिए आर्स औषधि का उपयोग कर सकते हैं। ऐसे ही रोगियों के इस रोग को ठीक करने के लिए नाइट्रिक एसिड का भी उपयोग किया जा सकता है।
13. फेरम-फास : इस रोग के होने के साथ ही हल्का बुखार होना तथा खासकर यह रोग बच्चों को होने पर इस औषधि से उपचार कर सकते हैं।
14. लैके : न्युमोनिया होने पर रोगी को सांस लेने और छोड़ने पर बदबू आ रही हो तथा यह बदबू सड़न जैसी हो तो उपचार लैके औषधि से करने से फायदा मिलता है।
15. कैक्टस : न्युमोनिया रोग होने के साथ ही छाती में खून जमा होने पर इस औषधि से उपचार करना चाहिए।
16. विरे-विर : न्युमोनिया रोग से पीड़ित रोगी के मस्तिश्क-कशेरुका पर जलन हो रही हो तो उपचार करने के लिए इस औषधि का उपयोग कर सकते हैं।
17. आर्निका : यदि यह रोग किसी प्रकार से चोट या अधिक परिश्रम करने से हुआ हो तो चिकित्सा करने के लिए आर्निका औषधि का उपयोग लाभदायक होता है।
18. लाइको :  न्युमोनिया रोग होने के बाद वायुनलीभुज में तेज दर्द होने पर रोग को ठीक करने के लिए लाइको औषधि का उपयोग करना लाभकारी होता है।
19. हायोसायमस : खांसी होना और परेशानी में रहने के सपने आना, रोना-धोना और चिल्लाना, उत्तेजना होना, रोग के अंतिमावस्था में बिस्तर के चादर को नोचना। इस प्रकार के लक्षण न्युमोनिया से पीड़ित रोगी में है तो उपचार इससे किया जा सकता है।
20. क्यूप्रम : न्युमोनिया रोग से पीड़ित रोगी को यदि लकवा मारने का डर लग रहा हो तो उसका उपचार क्यूप्रम औषधि की 3 शक्ति से करना चाहिए।
21. कार्बो-वेज : इस रोग से पीड़ित रोगी का रंग हरा हो गया हो और हाथ-पैर भी हरे रंग का हो गया हो, पूरा शरीर ठंडा हो गया हो, शरीर से ठंडा पसीना आ रहा हो, मुंह के पास जोर से हवा करने का मन कर रहा हो और बीमारी के लक्षण कम हो रहे हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए कार्बो-वेजऔषधि की 30 शक्ति से उपचार करना लाभकारी होता है।
22. एमोन-कार्ब :  न्युमोनिया रोग से पीड़ित रोगी में अधिक आलस्य हो तो उपचार एमोन-कार्ब औषधि की 3 शक्ति से करना लाभदायक होता है।
23. बैसिलिनम : न्युमोनिया रोग को ठीक करने के लिए चुनी हुई औषधि के साथ हफ्ते में एक बार बैसिलिनम औषधि का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है। इस औषधि का उपयोग करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि रोगी में इस प्रकार के लक्षण हों- टी.बी के खांसी के जैसे फेफड़े में जलन होना, खून बहना आदि।
24. एकालिफा इण्डिका :  न्युमोनिया रोग से पीड़ित रोगी का उपचार इस औषधि की 3 शक्ति से तब करते हैं जब रोगी का खून गहरे लाल रंग का बहता है और तेज खांसी होती है।
25. हेमामेलिस :  इस रोग से पीड़ित रोगी में काले रंग का तथा थक्का जमा हुआ खून का स्राव होने पर हैमामेलिस औषधि की 1x मात्रा से चिकित्सा कर सकते हैं।
26. मिलिफोलियम :  लाल फेन युक्त खून निकलने पर इस औषधि की 1x मात्रा से उपचार करना चाहिए।
27. जेलसीमियम : न्युमोनिया रोग से पीड़ित रोगी के दाहिनी ओर के फेफड़े में जलन हो रही हो और इसके साथ ही यकृत के भाग में दर्द हो रहा हो, पीले रंग के लसदार पतले दस्त आ रहे हों, सांस लेने में परेशानी हो रही हो, चेहरा लाल हो गया हो, सिर में दर्द हो रहा हो, पूरे शरीर में ऐसा महसूस हो रहा हो कि जैसे वह निर्जीव हो गया हो, आलस्य हो और दिमाग ठीक प्रकार से कार्य न कर रहा हो, शरीर में कंपन हो रही हो तो ऐसे रोगी के रोग को ठीक करने के लिए 3x मात्रा या 6 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
28. लाइकोपोडियम : न्युमोनिया रोग की तीसरी अवस्था में पीब पैदा होने पर इस औषधि की 12 या 30 शक्ति का उपयोग करना चाहिए। दाहिनी तरफ न्युमोनिया होने पर तथा इसके साथ ही यकृत में किसी प्रकार की गड़बड़ी होने पर एक-एक बार बहुत सारा बलगम निकल रहा हो तो लाइकोपोडियम औषधि का सेवन करने से लाभ मिलता है। बलगम पीला और भूरे रंग का पीला होना, बलगम बदबूदार होना और पीब की तरह खून मिला हुआ होना, कुछ बदरंग लगे रहने की तरह, टाइफायड का न्यूमोनिया होना, सांस लेने और छोड़ने के साथ दोनों नासा-फलकों का चढ़ना-उतरना आदि होने पर चिकित्सा करने के लिए लाइकोपोडियम औषधि का सेवन करना लाभदायक होता है।


घरेलू में


देशी गाय के घी से मालिश व सिकाई


*सुअर की चर्बी का घी सिर्फ दो बूंद हप्ते में एक या दो दिन हल्का गर्म कर पिलाये व मालिश जीवन मे कभी निमोनिया नही होगा*


मनरगोह (जलीय जंतु है) हमारे बिहार में बोलते हैं उसके तेल से मालिश


निमोनिया में अजवायन की सिकाई भाप नस्य भी लाभदायक है



किसी भी जानकारी , नुस्खे व औषधीय प्रयोग को व्यावहारिक रूप में आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले।