नई दिल्ली
निर्भया के गुनाहगारों में से एक पवन गुप्ता की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है और उसे 2012 में बालिग माना है। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला लिया कि यह मामला पहले भी उठाया गया है और निचली अदालतों ने इसे खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट का फैसला सही था और हमें इस याचिका में कोई नई बात नहीं दिखाई देती, इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।
बता दें कि पवन ने याचिका में कहा है कि वह दिसंबर 2012 में नाबालिग था। उसकी ऐसी ही याचिका दिल्ली हाईकोर्ट ठुकरा चुका है जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अपराध के वक्त नाबालिग होने की अर्जी डाली है। साथ ही उसने एक फरवरी को होने वाली फांसी पर रोक लगाने के लिए भी याचिका डाली है। नीचे पढ़िए अदालत में क्या कार्यवाही हुई...
अदालत में क्या-क्या हुआ
सुनवाई शुरू होते ही दोषी पवन के वकील एपी सिंह ने पवन के स्कूल सर्टिफिकेट को दिखाकर कहा कि उसका जन्म 8 अक्तूबर 1996 में हुआ था। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि यह सर्टिफिकेट 2017 में पेश किया गया जब आरोपी को दोषी करार दिया जा चुका था।
फिर जस्टिस भानुमति ने पूछा- किसने दस्तावेज लेने के लिए आवेदन दिया था? तब दोषी के वकील ने कहा मैंने याचिका डाली थी। वकील ने आगे दलील देते हुए कहा कि हर जगह यह केस निर्भया के नाम से दर्ज है। जबकि इस केस का अधिकारिक नाम निर्भया नहीं है। वकील एपी सिंह ने कहा कि पवन की उम्र छिपाने के लिए बड़ी साजिश रची गई है।
इस पर जस्टिस भूषण ने पूछा कि आप पवन की उम्र को लेकर जो सवाल उठा रहे हैं जिस पर यहां कार्यवाही हो चुकी है। क्या आपको उसी मुद्दे को नए सबूत के साथ लाने की इजाजत दी जा सकती है?
सॉलिसीटर जनरल ने अपनी दलील में कहा कि यह याचिका उन्हीं दस्तावेजों पर डाली गई है, जिस पर पहली भी डाली जा चुकी है। उनकी इस बात से जस्टिस भानुमति ने सहमति जताई।
एपी सिंह ने जोर दिया कि हमारे पास नए दस्तावेज हैं। लेकिन अदालत इस बात पर सहमत नहीं दिखी। जस्टिस भानुमति ने कहा कि सवाल तो वही है कि अगर आप इस तरह याचिकाएं लगाते रहे तो यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।