सूर्य किरण चिकित्सा के लाभ

 


सूर्य किरण चिकित्सा के लाभ और विधि


*सूर्य किरण चिकित्सा क्या है ?*


*सारी सृष्टि को ऊर्जा प्रदान करने वाले भगवान सूर्य की किरणों में अपार रोगनाशक शक्ति छुपी होती है। इसलिए ऋग्वेद में सूर्य को रोगनाशक कहा गया है अथर्ववेद में सर्य को औषधिकारक कहा गया है-सूर्यः कृणोतु भेषजं। जिसमें सूर्य चिकित्सा के सिद्धान्त को प्रतिपादित करते हुए सूर्य किरणों से विभिन्न रोगों का इलाज बताया गया है। सूर्य उपासना व सूर्य को जल देना सूर्य किरण चिकित्सा के ही रूप हैं। सूर्य की किरणों में नीला, लाल व हरा ये तीन रंग प्रमुख हैं। शेष बैंगनी, आसमानी, पीला व नारंगी ये उपरोक्त तीनों रंगों के मिश्रण है। रंगों में प्रमुख गुण भी भिन्न-भिन्न हैं-*


*1.नीला-आसमानी-बैंगनी-ठण्डक एवं शांति प्रदान करते हैं।*
*2. लाल-पीला-नारंगी-गर्मी एवं उत्तेजना।*
*3. हरा-सभी रंगों के मध्य संतुलन बनाये रखता है व रक्त शोधक वर्तमान में सूर्य किरण चिकित्सा में सात रंगों के स्थान पर प्रत्येक समूह में से एक रंग का ही उपयोग अधिक प्रचलित है; जिससे चिकित्सा पद्धति अधिक सरल बन गयी है। प्रथम तीन रंगों के समूह में से प्रायः नीला रंग, अन्तिम रंगों के समूह में से नारंगी एवं बीच के हरे रंग का अधिकतर उपयोग किया जाता है। सूर्य किरण चिकित्सा के लिए सूर्य किरणों से तप्त पानी उपयोग करने की विधि सर्वाधिक प्रचलित है।*


*1. नीला पानी-*


*• नीला रंग ठण्डा, शान्तिदायक, कीटाणुनाशक गर्मी के प्रकोप से उत्पन्न रोगों में विशेष प्रभावशाली होता है।*
*• इसके उपयोग से मानसिक तनाव कम होता है।*
*• कीटाणु नाशक होने के कारण मवाद पड़ने की अवस्थाओं में काफी लाभप्रद होता है।*
*• शरीर की गर्मी, हाथ पैरों की जलन, प्यास की अधिकता, तेज़ बुखार, हैजा, अजीर्ण, दस्त, अनिद्रा, मिरगी, पागलपन, हिस्टीरिया, उच्च रक्तचाप, मूत्रावरोध, मूत्र में जलन, शरीर में किसी प्रकार का जहर फैल जाना, जैसे रोगों में नीले रंग की दवा काफी लाभप्रद होती है।*
*• गले, गर्दन, मुंह, मस्तिष्क एवं सिर से संबंधित रोगों पर नीले रंग का अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है।*


*सावधानी व उपयोग विधि –*


*नीले रंग का प्रयोग सदैव भोजन या नाश्ते के आधा घण्टे पूर्व करना चाहिए। लकवा, सन्धिप्रदाह, जोड़ों का दर्द (गठिया), विभिन्न वात, कम्पनजन्य रोग व ठण्ड से उत्पन्न विकार और अधिक कब्ज़ की शिकायत में नीले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए।*


*2. नारंगी पानी –*


*• नारंगी रंग शरीर के कमजोर तथा निष्क्रिय अंगों को मजबूत एवं गतिशील बनाता है।*
*• पाचन शक्ति सुधारता है। भूख न लगने वाले रोगों को दूर करता है।*
*• इस रंग का प्रभाव गर्म, उत्तेजक शक्तिवर्धक होने से सर्दी से होने वाले रोगों में विशेष लाभदायक सिद्ध होता है।*
*• आमाशय, तिल्ली, लीवर, आंतों, फेफड़ों व हाथ-पैर के रोगों में इसका अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है।*
*• यह आयोडीन की कमी मिटाता है।*
*• रक्त में लाल कण बढ़ाता है।*
*• मांसपेशियां स्वस्थ बनाता है और झुर्रियां मिटाने में सहायक होता है।*
*• रक्त संचालन एवं स्नायु संस्थान को सक्रिय बनाता है।*
*• भूख न लगना, गैस, जोड़ों का दर्द, खांसी, बच्चों की बिस्तर में पेशाब करने की आदत, निम्न रक्त चाप, स्नायु दुर्बलता आदि रोगों को मिटाने की अद्भुत क्षमता रखता है।*
*• नारंगी रंग के सेवन से पेट की गैस दूर होती है।*
*• अम्लता वाले रोगियों को विशेष लाभ होता है।*
*• वृद्धों के लिये ताकत की दवा के समान होता है।*


*सावधानी व उपयोग विधि –*


*नारंगी रंग की दवा का प्रयोग सदैव भोजन या नाश्ते के 15 मिनट बाद और 30 मिनट के भीतर करना चाहिये। खाली पेट इसका सेवन नहीं करना चाहिए। छोटे बच्चों के लिए एक चम्मच, किशोरों के लिए चार चम्मच व बड़ों के लिए आठ चम्मच (छोटे चम्मच) मात्रा पर्याप्त रहती है। इसका प्रयोग दिन में दो या तीन बार करना चाहिए, इससे अधिक नहीं व लाभ मिलने पर सेवन बन्द कर देना चाहिए।*


*3. हरा पानी –*


*• हरा रंग गर्म और ठण्डे रंग के बीच का रंग होने से गर्मी तथा सर्दी के प्रभावों को संतुलित करता है।*


*• यह शरीर की गन्दगी बाहर निकालने, शरीर का ताप संतुलित रखने, कब्ज़ मिटाने तथा खून को साफ करने में विशेष सहायक होता है।*


*• शरीर के विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकाल फेंकने की अद्भुत क्षमता के कारण छूत की बीमारियों के निवारण में यह बहुत ही उपयोगी होता है।*


*• अल्सर, टाइफाइड, चेचक, सूखी खांसी, खुले घाव, पथरी, रक्तचाप, मिरगी, हिस्टीरिया, मुंह में छाले तथा शरीर के किसी भी भाग में पीली पीब पड़ने की अवस्था में उनको नष्ट करने में काफी लाभप्रद होता है। •आंतों, गुर्दो, मूत्राशय, त्वचा, कमर व पीठ के नीचे के अंगों से संबंधित रोगों में हरा रंग अधिक प्रभावशाली होता है।*


*• शरीर में इस रंग की कमी से विभिन्न चर्म रोग तथा रक्त दोषों की सम्भावनायें बढ़ जाती हैं। नेत्र रोगों में भी यह विशेष लाभकारी होता है।*


*उपयोग विधि –*


*हरे रंग की दवा का प्रयोग सदैव प्रात:काल खाली पेट या भोजन के एक घण्टा पहले करना चाहिये। सुबह शाम खाली पेट एक-एक कप सेवन उचित रहता है।*


*रंगीन पानी बनाने की विधि :*


*✦जिस रंग का पानी बनाना हो उस रंग की साफ धुली हुई काँच की बोतल में शुद्ध जल इतना भरें कि एक चौथाई बोतल खाली रहे। बोतल कांच की ही होनी चाहिए, प्लास्टिक की नहीं। यदि बोतल उस रंग की न मिले तो उस रंग का सिलोफेन पेपर सफेद कांच की बोतल पर लपेट देना चाहिए।*


*✦ पानी भर कर ढक्कन, कार्क या लकड़ी का डॉट या टिन का ढक्कन अच्छी तरह लगा कर लकड़ी के एक पटिये (फटटी) पर रख कर धूप में रखें। शीतकाल में 7-8 घण्टे और ग्रीष्मकाल में 5-6 घण्टे रखने से पानी सूर्य की किरणों में तप्त हो कर औषधीय गुण धारण कर लेता है। धूप समाप्त होने से पहले ही बोतल को पटिया सहित उठाकर अन्दर कमरे में पटिये पर ही रखना चाहिए।*


*✦एक बार तैयार किया हुआ पानी तीन दिन तक गुण-प्रभाव वाला बना रहता है। तीन दिन बाद नया ताजा पानी भर कर फिर से पानी तैयार करना चाहिए। ध्यान रहे, बोतल पर किसी दूसरे रंग की छाया नहीं पड़नी चाहिए।*


*सूर्यतापित नारियल नीला तेल :*


*✦इस तेल को बनाने के लिए नीले रंग की कांच की बोतल में तीन चौथाई नारियल तेल भरकर अच्छी तरह डाट या ढक्कन लगा दें। अगर नीले रंग की बोतल न मिले तो सफेद रंग की बोतल पर नीला सेलोफेम काग़ज़ लपेटकर भी काम चला सकते हैं। आप इस बोतल को लकड़ी के पट्टे पर ऐसे स्थान पर रखें जहां दिन भर धूप रहे।*


*✦बोतल को रोजाना लगभग आठ घंटे धूप में रखें और शाम होने से पहले पट्टे समेत लाकर कमरे में रख लें। धूप में धूल आदि बोतल के ऊपर लगी हो तो उसे भी साफ कपड़े से पोंछ दिया करें।*


*✦इस तरह लगभग 45 दिनों तक धूप दिखाने पर यह तेल सूर्यकिरणों से साधित हो जाता है और नीले रंग के सभी रोग निवारक गुण इसमें आ जाते हैं।*


*✦रात को सोने से पूर्व उंगलियों के पोरों से बालों की जड़ों में इस तेल की मालिश करनी चाहिए। इससे बालों का जल्दी सफेद होना, कड़े होना, गिरना व टूटना आदि रुकता है।*


*✦सिर की त्वचा के विकार जैसे रूसी या सीकरी, खुश्की, फोड़े-फुसियां आदि दूर होते हैं तथा केश काले, लम्बे, घने तथा रेशम की तरह मुलायम होते हैं।*


*✦नीले तेल की मालिश से सिर में तरावट रहती है तथा नींद अच्छी आती है। इस तेल की विशेषता यह है कि एक बार बनाने के बाद यह तीन माह तक गुणकारी बना रहता है। तीन माह बाद सिर्फ तीन दिन धूप दिखा देने से यह अगले तीन माह के लिए पुन: उपयोगी बन जाता है।*