अडूसा (वासा)

अडूसा (वासा)



अडूसा जिसे वासा भी कहा जाता है एक आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है। इस पौधे का प्रयोग खांसी, अस्थमा, साँस की तकलीफ, नाक बंद होना, रक्तस्राव संबंधी विकार, एलर्जी, श्वसन प्रणाली के संक्रमण, गर्भाशय से अत्यधिक रक्तस्राव, माहवारी में अत्यधिक खून बहना, और नाक से खून बहना आदि समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है।


अडूसा अर्थात् वासा कफ का स्त्राव कम करता है और खांसी को ठीक करता है। इसमें कफ निस्सारक (बलगम निकालने वाली) और ब्रांकोडायलेटर गुण पाए जाते है। इन गुणों के कारण इसका प्रयोग सांस की तकलीफ में किया जाता है। यह खांसी से मुक्ति दिलाता है, श्वसन संस्थान के संक्रमण से छुटकारा दिलाता है और अस्थमा को दूर करने में भी सहायक है।


वासिसिन नामक अल्कोलॉइड अडूसा में पाया जाता है जो कफ निस्सारक और ब्रांकोडायलेटर का काम करता है। इससे प्रेरणा BROMHEXINE दवा बनाई गई है। जिसका प्रयोग एलोपैथिक डॉक्टर श्वसन संस्थान के रोगों में करते है। इसका प्रयोग एलोपैथिक डॉक्टर श्वसन संस्थान के रोगों में करते है।


आयुर्वेदिक गुण धर्म एवं दोष कर्म
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रस (Taste) तिक्त, कषाय
गुण (Property) लघु, रुक्ष
वीर्य (Potency) शीत (ठंडा)
विपाक (Metabolic Property) कटु
दोष कर्म (Dosha Action) कफ शामक, पित्त शामक
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
अडूसा (वासा) में निम्नलिखित औषधीय गुण है:


कफ नि:सारक – बलगम की चिपचिपाहट कम कर और कफ स्राव को तोड़कर कफ को बाहर निकालने वाला
श्लेष्मपूतिहर
कासहर
श्वासहर
ह्रदय – दिल को ताकत देने वाला
रक्त शोधक
रक्तस्तभ्भन (शोणितस्थापन)
चिकित्सीय संकेत
अडूसा (वासा) निम्नलिखित रोगों में सहायक है।


खांसी (पीले गाढ़े थूक और बुखार के साथ)
ट्यूबरकुलोसिस के कारण पुरानी खाँसी बिना क्षय रोग की दवाइयों के साथ
अस्थमा (घरघराहट, श्वास में समस्या और छाती में जमाव)
ऊपरी श्वसन संक्रमण (बुखार और अधिक खाँसी के साथ)
सामान्य सर्दी जुकाम (मोटे पीले रंग के डिस्चार्ज या जीवाणु संक्रमण के साथ)
पुरानी श्वसनीशोध
साइनसाइटिस (शिरानालशोथ)
गले में खराश
गले में दर्द
गले में जलन
टॉन्सिलिटिस (टॉन्सिल की जलन या सूजन लाल रंग के साथ)
गले का अल्सर
अधिक प्यास लगना
नाक से खून निकलना (एपिस्टेक्सिस) – अतिरिक्त गर्मी के कारण
हृद्‍शूल
दिल का रोग (उच्च रक्तचाप के साथ)
हल्की कब्ज
डेंगू बुखार
अडूसा (वासा) के लाभ और उपयोग
आयुर्वेद में अडूसा श्वसन रोगों के लिए सबसे पसंदीदा दवा है। खांसी और अस्थमा के लिए प्रयोग होने वाली हर आयुर्वेदिक दवा में इसका प्रयोग किया जाता है। यह एक साधारण, आसानी से मिलने वाली और सुरक्षित जड़ी बूटी है जो बैक्टीरिया के संक्रमण और गले की समस्याओं से राहत प्रदान करती है। इस जड़ी बूटी का खास प्रभाव श्वसन प्रणाली और संचार प्रणाली पर पाया गया है। अडूसा के कुछ नैदानिक उपयोग और स्वास्थ्य लाभ इस प्रकार हैं।


खांसी
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अडूसा में खांसी को रोकने के लिए खास गुण हैं जिससे खांसी में राहत मिलती है। पशुओं पर किये गए अध्ययनों में ऐसा पाया गया है कि खांसी को दबाने का प्रभाव कौडीन (पोस्ताखार) के बराबर है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में अडूसा का प्रयोग तब किया जाता है जब रोगी को गाढ़े पीले थूक वाली खांसी हो और बुखार, घरघराहट या खांसने में भी समस्या हो। ऐसे में निम्नलिखित जड़ी- बूटियों का संयोजन दिया जाता है।


अडूसा चूर्ण 2 ग्राम
सितोपलादि चूर्ण – Sitopaladi churna 2 ग्राम
शहद 1 चम्मच
अडूसा के पत्तों से बनाया जाने वाला काढ़ा भी ऐसी समस्या को दूर करता है। इसका काढ़ा सूजन, खाँसी और घरघराहट को कम करता है और यह आसानी से साँस लेने में मददगार है।


अस्थमा
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अडूसा में सूजन को कम करने गुण होते हैं। यह अस्थमा के रोग में सहायक है साथ ही यह वायुमार्ग और फेफड़ों की सूजन को भी कम करता है।


इसके अलावा अडूसा में पाया जाने वाला वासिनी कंपाउंड श्वसनीविस्फारक होता है जो साँस लेने की की प्रक्रिया को आसान बनाता है और अस्थमा के कारण होने वाली घरघराहट कम करता है।


आयुर्वेद में, निम्नलिखित जड़ी बूटियों का मिश्रण अस्थमा के लिए सहायक होता है।


ताज़ा अडूसा के पत्तों का रस 5 मिलीलीटर
ताजा अदरक का रस 2.5 मिलीलीटर
शहद एक चम्मच
अगर आप ताज़ा दवा को तैयार नहीं कर सकते तो जड़ी बूटियों के निम्नलिखित फॉर्मूले से भी अस्थमा के अटैक को कम कर सकते हैं और इससे साँस लेने में भी मदद मिल सकती है।


अडूसा का चूर्ण 2 ग्राम
पुष्करमूल 250 मिलीग्राम
त्रिकटु चूर्ण – Trikatu 250 मिलीग्राम
सितोपलादि चूर्ण 2 ग्राम
शहद 1 चम्मच
ऊपरी श्वसन संक्रमण
अडूसा में जीवाणुरोधी और रोगाणुरोधी गुण मौजूद होते है इसलिए, यह श्वसन प्रणाली में होने वाले विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया संक्रमणों को दूर करने में सहायक है।


आयुर्वेद में अडूसा का प्रयोग समान्यतया बुखार, ऊपरी श्वसन प्रणाली के संक्रमण और खांसी को दूर करने में किया जाता है। इसी उद्देश्य से प्रयोग की जाने वाली कई आयुर्वेदिक योगों का यह प्रमुख घटक है। सबसे समान्य प्रयोग किया जाने वाला सूत्रीकरण वासबलेहा है। अडूसा सूत्रीकरण ऊपरी श्वसन संक्रमण के प्रबंधन में भी उपयोगी है।


अडूसा चूर्ण 1 ग्राम
सितोपलादि चूर्ण 2 ग्राम
महा सुदर्शन चूर्ण – Mahasudarshan Churna 2 ग्राम
तुलसी चूर्ण 1 ग्राम
शहद 1 चम्मच
जब रोगी को गाढ़ा पीले रंग का थूक आये, खांसी , बुखार, नाक में जमाव या घरघराहट हो तो ऐसे में यह औषधि अच्छे सी काम करती है।


सामान्य सर्दी


अडूसा में वायरल विरोधी औषधीय गुण भी पाए जाते है, जो इसे वायरल रोगों में असरदार बनाते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक इसका प्रयोग तब करते हैं जब नाक से निकलने वाला मवाद पीला और गाढ़ा हो। सामान्यतया, इस स्थिति में वासावलेह लेने की सलाह दी जाती है, किन्तु इस अवस्था में अडूसा का यह मिश्रम भी असरदार है।


अडूसा 1 ग्राम
सितोपलादि चूर्ण 1 ग्राम
पुनर्नवा चूर्ण 1 ग्राम
त्रिकटु चूर्ण 125 मिलीग्राम
शहद 1 चम्मच
साइनसिसिस और साइनस संक्रमण
अडूसा में रोगाणुरोधी और जलन विरोधी गुण होते है। यह साइनस में होने वाली सूजन को कम करता है


और इन्फेक्शन को रोकने में भी सहायक है। इससे साइनस की रुकावट कम हो जाती है और उनमें जमा मवाद या द्रव भी हटता है।


अडूसा ब्रोन्कियल ट्यूबों पर एंटीसेप्टिक प्रभाव डालता है। यह ब्रोन्कियल ट्यूबों की सूजन को कम करता है और गाढ़े बलगम को कम कर देता है। अडूसा ब्रोन्कियल ट्यूब्स को साफ करता है और खांसी, थूक का उत्पादन, थकान, श्वास और ब्रोंकाइटिस से होने वाले छाती का दर्द को कम कर देता है।


श्वासनलियों का फैलाव
श्वासनलियों का फैलाव पुरानी सूजन के कारण होता है, जो थूक को साफ नहीं कर पाने के कारण होता है। ऐसी स्थिति में, वायुमार्ग का असामान्य फैलाव अत्यधिक बलगम के बनने का कारण होता है।


आयुर्वेदिक दवाओं में अडूसा को ऐसी स्थिति से निपटने के लिए प्रयोग किया जाता है। हालाँकि इसमें हल्का ब्रांकोडायलेटर भी होता है किन्तु इसमें म्यूकोलाईटिक और कफ को अच्छे से बाहर निकालने की क्षमता होती है इसलिए इसके ब्रोन्कोडायलेटरी गुणों के प्रभाव आगे पैदा होने वाले ब्रोन्कोडायलेटेशन को कम कर देता है। यह बलगम को बाहर निकालने और खांसने में और वायुमार्ग को साफ़ रखने में मदद करता है। इसके अलावा, इससे वायुमार्ग की पुरानी सूजन कम हो जाती है, जिससे वायुमार्ग के प्राकृतिक कार्यों को करने में मदद मिलती है।


अगर वलगम बहुत गाढ़ी है और इसके बाहर निकलने में मुश्किल हो रही हो तो अडूसा के 20 मिलीलीटर जूस को 250 मिलीग्राम काले नमक (Black Salt) के साथ पीने से लाभ होता है।


ब्रोन्कोडाइलेटेशन को कम करने के लिए 3 ग्राम अडूसा के पत्तों के चूर्ण को 50 मिलीग्राम धतूरा के पत्तों (Datura leaves powder) के चूर्ण और एक चम्मच शहद के साथ लेने से लाभ होता है।


पोस्टासनल ड्रिप या डिस्चार्ज वाले मरीजों को अडूसा के पत्तों को सितोपलादि चूर्ण और पुनर्नवा चूर्ण के साथ देने से भी लाभ मिल सकता है।


अलसर (फोड़ा)
वैज्ञानिक अध्ययन और विश्लेषण के अनुसार, अडूसा में अल्सर रोधी गुण भी पाए जाते हैं। इसके पत्ते का एस्पिरिन के साथ प्रयोग करने से NSAIDs के द्वारा होने वाले अल्सरेशन के प्रभाव को कम किया जा सकता है। आयुर्वेद के अनुसार यह यह रक्तस्राव विकारों और अल्सरेशन में फायदेमंद होता है। यह विभिन्न आयुर्वेदिक प्राचीन किताबों जैसे चरक संहिता में भी बताया गया है।


यह पाचक संबन्धी और डुओडानल अल्सर में भी सहायक है। इस उद्देश्य के लिए अडूसा के निम्नलिखित मिश्रण का उपयोग किया जाता है।


अडूसा 1 ग्राम
मुलेठी – (Mulethi) – Glycyrrhiza glabra 1 ग्राम
शतावरी चूर्ण – Shatavari 500 मिलीग्राम
बंसलोचन – Banslochan 500 मिलीग्राम
मिश्री 1 ग्राम
रक्तस्राव विकार
(नाक और आंतरिक रक्तस्राव के साथ)


निम्नलिखित मिश्रण का खून बहने के विकार, खांसी, और अस्थमा के लिए प्रयोग किया जाता है।


अडूसा जूस 5 ग्राम
विटिस विनिफेरा 5 ग्राम
हरीतकी फल का गुदा 5 ग्राम
इन जड़ी बूटियों को बताई मात्रा के अनुसार लें और 400 मिलीलीटर पानी में इसका काढ़ा बनाएं। जब यह काढ़ा 100 मिलीलीटर रह जाए तो इसे ठंडा होने दें। अब इस काढ़े में एक चम्मच शहद मिलाएं और दिन में दो बार पीएं।


गठिया या यूरिक एसिड का बढ़ना
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अडूसा सूजन कम करता है। दूसरी जड़ी बूटियों के साथ मिला कर इसका प्रयोग करने से यूरिक एसिड कम होता है। इसके साथ ही गठिये में होने वाली दर्द को भी यह कम करने में मदद करता है। इसका उपयोग गिलॉय (टिनसॉपोरा कॉर्डिफ़ोलिया) और एमाल्टस (कैसिया फास्ट्यूला) के साथ संधिशोथ में भी किया जाता है।


यूरीमिया


यूरीमिया रक्त में बढ़ रहे यूरिया के स्तर और नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट के कारण होने वाली समस्या है। यह आमतौर पर गुर्दे की चोट और पुरानी गुर्दे की विफलता के कारण होता है। ऐसे मामलों में, गुर्दे इन विषैले अपशिष्टों को खत्म करने में असमर्थ हो जाते हैं।


अडूसा की जड़ का काढ़ा यूरिया के स्तर को कम करने में सहायक है और खून से नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पर्दार्थों को भी कम करता है। यह काम कैसे करता है इसका अभी कोई पता नहीं है किन्तु यह पेशाब में से यूरिया और बाकि अपशिष्टों को बाहर निकालता है। 50 मिलीलीटर अडूसा की जड़ के काढ़ें को पुराने गुर्दे की विफलता जैसे रोग में पीने से फायदा होता है। इसके लिए इस काढ़े को खाली पेट चन्द्रप्रभा वटी के साथ लेना चाहिए। इस काढ़े के सेवन से कुछ समय बाद ही अच्छे परिणाम मिलते हैं।


गर्भाशय से अधिक रक्त स्राव
अडूसा जूस के 10 मिलीलीटर या 50 मिलीलीटर अडूसा के काढ़ें में दस ग्राम मिश्री मिला कर पीने से गर्भाशय से होने वाले अधिक रक्त स्राव से छुटकारा मिलता है। इस औषधि को चार से छे हफ्ते तक लेना चाहिए। इस औषधि के साथ चन्द्रप्रभा वटी (Chandraprabha Vati) को लेने से गर्भाशय को अपने प्राकृतिक कार्यों को करने में मदद मिलती है।


सुरक्षा रूपरेखा
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ऊपर बताये अनुसार अडूसा के हरेक भाग का सेवन करना सुरक्षित है।


अडूसा के दुष्प्रभाव
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अगर अडूसा का प्रयोग इसके प्राकृतिक रूप में किया जाये तो इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है जैसे इसके पत्तों का चूर्ण, पत्तों का जूस या काढ़े का प्रयोग।


गर्भावस्था और स्तनपान
अडूसा का चूहों पर अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में पत्तों के रस का प्रयोग किया गया जिसमे यह निष्कर्ष निकला की इसके प्रयोग ने गर्भपात नहीं होता। हालाँकि गर्भवस्था और स्तनपान में इसके दुष्प्रभावों का कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है।


आयुर्वेद में, गर्भावस्था के दौरान अडूसा का प्रयोग जी मिचलाना, उलटी या अम्लता को दूर करने के लिए अदरक के साथ किया जाता है। इसलिए थोड़े समय या मात्रा में उसका प्रयोग करने से इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता किन्तु लम्बे समय तक इसका प्रयोग करने से बचना चाहिए।