किसी भी काम में हाथ डालने से पहले मन ही मन भगवान की और देखने की आदत डालें

आस्तिकता की आधारशिलाएँ


*किसी भी काम में हाथ डालने से पहले मन ही मन भगवान की और देखने की आदत डालें*


   यदि कोई कहे कि कल सूर्य नहीं उदय होगा, परसों की बात भी पक्की नहीं कही जा सकती तो हमें उसकी बात सच्ची लगेगी क्या ? हम तो हँसेगे और यह सोचने लगेंगे कि इसका माथा फिरा हुआ दिखता है, यह पागल हो गया है। एक अंधे को भी- जिसने कभी सूर्य नाम की वस्तु नहीं देखी जो यह कभी जान नहीं सका कि प्रकाश क्या वस्तु है -- ऐसे जन्म से अंधे को भी यह बात कहे जाने पर वह हंसेगा ही ; क्योंकि उसे सुन सुन कर यह विश्वास कर लिया है कि सूरज तो रोज ही उगता है और उसके उगने पर प्रकाश फैल जाता है। वैसे ही भगवान की प्राप्ति नहीं होने पर भी, भगवान का साक्षात्कार नहीं होने पर भी, भगवान के अस्तित्व में भगवान की अहैतुकी कृपा में सच्चा विश्वास हो जाने पर उस विश्वास को हिला देना -- डिगा देना असंभव है। भगवान के अस्तित्व में भगवान की अहैतुकी कृपा में विश्वास होते ही मन अपने-आप पाप कर्मों से हट जाता है। मन में सत्व गुण का प्रकाश बढ़ने लगता है। मन में कामनाओं की जो निरंतर भट्टी चलती रहती है, उसके बुझते देर नहीं लगती। पद-पद पर पर जो प्रतिकूलता अनुभव होकर, छोटी-बड़ी कामना की पूर्ति में ठेस लग कर क्रोध की आग जल उठती है, धधकनें लगती है, वह आग शांत होने लगती है, वह शांत होकर ही रहेगी। प्रत्येक बात में ही हमें संतोष का भान होकर हमारी सांस आज जो तेजी से चलती रहती है, वह स्थिति मिटकर प्रत्येक हालत में ही हमें संतोष का सुख अनुभूत होने लगेगा, वह शांति मन को परिपूरित किए रहेगी--जिसकी कल्पना हमें अभी तक स्वप्न में भी नहीं हो सकी है। ऐसा होता है--भगवान के अस्तित्व में विश्वास का फल। भगवान की कृपा में सच्चा विश्वास हो जाने का परिणाम ऐसा ही होता है ।


     हम कह सकते हैं कि क्या हमारे मन में भगवान का सच्चा विश्वास नहीं है ? भगवान की अहैतुकी कृपा को क्या हम नहीं मानते ? इसका उत्तर यह है कि वाणी से अवश्य ही मानते हैं, परंतु यह मानना बुद्धि के दृढ़ निश्चय में नहीं मिल सका ,मन के अणु-अणु में परमाणु-परमाणु में नहीं आ सका, इंद्रियों की निर्झर कलकल धारा की तरह प्रकट नहीं हो सका। यदि ऐसा हो गया तो हमारी उपयुक्त स्थिति हो ही जाती।


    हमारा पुनः प्रश्न हो सकता है कि 'फिर किस अवस्था में क्या किया जाए ?' इसका उत्तर यह है कि आंख खोलने से लेकर रात में फिर नींद आने तक हम जो भी करते हैं, उसे करने से पहले, किसी भी काम में हाथ डालने से पहले, मन ही मन भगवान की और इस भावना से देख लेने की आदत डालनी है नाथ ! आपमें, आपकी अहैतुकी कृपा में दृढ़ विश्वास हो जाए। नहाने चले, नहाने से पहले, कपड़ा पहनने चलें, पहनने से पहले , कोई पूजा पाठ करने चलें, उसे करने से पहले, कलेवा करने चलें, कलेवा से पहले, कलेवा के समय किसको उत्तर देना हो, उत्तर देने से पहले, बच्चों से खेलना हो, खेलने से पहले, ऑफिस जाना हो, ऑफिस जाने से पहले चढ़ने चढ़ने से पहले और पैदल जाना है, उस में पहला कदम उठाने से पहले -- सारांश यह है कि यह भावना जागृत होकर ही रहे। ऐसा थोड़े ही दिनों में यदि हम देख लेंगे कि हमारा जीवन पवित्र बन गया है,कितनी तेजी से हम परमार्थ के पथ पर आगे से आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।